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नया युग नया प्रभात

Adhyatma
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Naya Yug Naya Prabhat

२०१४के लोक सभा चुनावके परिणामोने नव युगके नवप्रभातका बिगुल बजनेका काम किया है. पहलीबार किसी गैर कोंग्रेसी पक्षको पूर्ण बहुमत देकर भारत वर्षकी सुज्ञ जनताने अपने अंतर्मनको सुस्पष्ट रूपसे मूर्त स्वरूप दिया है. एक तरह से देखा जाय तो यह देश का सर्व प्रथम धर्मनिरपेक्ष चुनाव है जब सारे कोमवादी समीकरण उल्टे पड़े है. इस देशकी महत्ता और अस्मिता उसकी सांस्कृतिक धरोहर है. इस धरोहरको नहीं समजने वाले और उसकी अवहेलना करनेवाले राजकीय पक्षों और उनके नेताओंको इस देशकी जनताने उनका वास्तविक कद दिखा दिया है.

कुछ महीनो पहले घटी एक घटना का आज पुनः मूल्यांकन करें तो मालूम होगा कि कांग्रेस पक्षके युवा नेता राहुल गांधी इस देश की सभ्यता समजनेमे बौने साबित हुए थे. इस देशमे स्वतंत्रता और स्वछँदताकी भेद रेखा जन मानसमे सुस्पष्ट है. घटना थी समलैंगिकों का समर्थन करने की. राहुल गांधी ने इस प्रकारके अप्राकृतिक संबंधों को पश्चिमकी तर्ज पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा बताया था. जब की भारतीय जनता पक्षके द्वारा ऐसे संबंधोंका स्पष्ट विरोध किया गया था. हमारे सर्वांगी विकासके लिए हमें अमेरिका या यूरोप बनने की आवश्यकता नहीं है. हम इस ग्रह पर बसी हुई मानव संस्कृति के जनक और पथ दर्शक है. विधिने हमें यह स्थान सृष्टिकी उत्पत्तिके समय से दिया है. संस्कार और सभ्यताके मामले में पश्चिमी देश हमसे आज भी सदियों पीछे है. जो समाज व्यवस्था उन्हें स्वीकार्य है वह हमें भी स्वीकारनी चाहिए यह आवश्यक नही है. अँगरेज़, फ्रांसीसी और पुर्तगाली यदि हम पर राज कर गए तो वह किसी वीर योद्धाकी तरह जीत कर नहीं बल्कि निकृष्ट कूट नीति के कारण जो हमारी सभ्यता सोच भी नहीं सकती थी. इस एक घटनाका तुलनात्मक अभ्यास दोनों राष्ट्रिय दलोंकी विचार धारा का अंतर स्पष्ट करता है.

जिस दिन कोंग्रेसी नेताओंने “भगवा आतंकवाद” शब्द प्रयोजित किया था उसी दिन उन्होंने इस देश पर शासन करने का अपना अधिकार खो दिया था. भगवा रंग क्या जताता है, उसके मायने क्या है, जिस रंगने इस देश को सर्वोच्च गरिमा दी है उस रंगके वस्त्रोंको धारण करने वाले साधु संतोंकी क्या वैचारिक भूमि है यह सब जाने बगैर मात्र किसी वर्ग विशेषको लुभानेके लिए करोड़ों हिन्दुओंकी आस्था और नैतिकताके प्रतिक रूप भगवे रंग पर बीभत्स टिप्पणी करने वाले नेताओंको इस देश के करोड़ों हिन्दुओने धैर्य पूर्वक शासन करने दिया, यही भगवे रंगकी गरिमा का उदहारण है.

कुछ अरसे पहले मैं एक कांफ्रेंसमें हिस्सा लेने रूस जा रहा था तब दुबईमें मुझे फ्लाइट बदलनी थी. वहां पर अरब सिक्योरिटी अफसरने मेरे भगवे वस्त्रोंको जो सन्मान दिया और जिस शालीनतासे व्यवहार किया वो मेरे ह्रदयको छू गया. ऐसा ही अनुभव मुझे मॉस्कोके दोमादेदोवा एयरपोर्ट पर वहांके अफसरोंसे हुआ. मेरा मन गहरे चिन्तनमे डूब गया. यह कोई मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं थी. जो सन्मान मुझे मेरे वस्त्रोंके कारण प्राप्त हो रहता उसके पीछे सदियोंका इतिहास है. बीती हुई सदियोंके लाखों संतोने इन भगवे वस्त्रों को वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाई है. इस प्रतिष्ठाकी घोर अवमानना करते हुए कांग्रेसी नेताओंको किंचितमात्र शर्म नहीं आई? किस प्रकारकी धर्म निरपेक्षता वो चाहते है? जेलमे सज़ायाफ्ता कैदियोंमें भी हिंदु मुसलमान का भेद करने वाला गृह प्रधान किस प्रकारके धर्म निरपेक्ष पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहा था?

इस चुनावमे जो सबसे बड़ी बात उभर कर सामने आई वो है भारत देशके मुसलमान भाई बहनोंकी जागरूकता. जिन्होंने किसी दुष्प्रचारके प्रभावमे आये बगैर मतदान किया.

आज जब पूर्ण बहुमतके साथ तथा श्री नरेंद्र मोदीजीके समर्थ नेतृत्वके तहत भारतीय जनता पक्ष भारत वर्षकी शासन धुरा संभालने जा रहा है तब यह कहना सर्वथा उचित रहेगा की नव युग का यह नव प्रभात है. हमारे देशका शासन उन हाथोंमे जा रहा है जो इस देशकी संस्कृतिको जानते है और उसका सम्मानभी करते है. हमारा प्रधान मंत्री अपने आपको “गंगा मैय्याका बेटा” कहलानेमे गर्व अनुभव करता है क्यूंकि पुण्य सलिला उभय तट पावनी श्री गंगा माँ सत्य, अहिंसा और विशुद्ध अन्तःकरणका संदेश देनेवाले भारत वर्षके सांस्कृतिक दर्शनकी प्रत्यक्ष प्रतिनिधि है.

नव युगके नव प्रभात के सूत्रधार श्री नरेंद्र मोदीजीका विश्वकी प्रचीनत्तम नगरी एवं भारतीय संस्कृतिकी सदैव साक्षी वाराणसीसे लोक सभामें चुना जाना भारत वर्षके इतिहासका नया प्रकरण मात्र नहीं किन्तु नया “पर्व” है. यह लिखते समय मेरे मनमें यह आशा है कि आने वाली पीढ़ियां जब भारत वर्षके इस महा भारतको पढ़े तब इस पर्व को “सुशासन पर्व” के नामसे जाने.
– श्रीयोगेश्वर चैतन्य
१८ मई २०१४
वड़ोदरा, गुजरात राज्य, भारत

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